लोकसभा 2019 पार्ट -2
लोकसभा 2019 पार्ट -2
2019 में कांग्रेस की स्थिति पर चर्चा करने से पहले चर्चा इस बात की कर लेते है कि 1984 में 404 सीटों के साथ सरकार बनाने वाली कांग्रेस आखिर 2014 में महज 44 सीटों पर ही सिमट कर क्यों रह गयी | दरअसल 1962 से पहले तक अपर कास्ट और दलित वर्ग में अपनी लोकप्रियता के चलते जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलता रहा था जिसका एक कारण उस समय विपक्ष का अत्यधिक कमजोर होना भी था | चीन और पाकिस्तान की लड़ाई के बाद अंदरुदनी विवादों के चलते 1967 में लालबहादुर शास्त्री के बेहतर प्रयासों के बावजूद कांग्रेस का मत 4 प्रतिशत कम हुआ लेकिन 283 सीटे लेकर सरकार कांग्रेस ने ही बनाई | विवादों के चलते कांग्रेस का विघटन हुआ और 1971 में जब इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया तो बेशक 352 /518 सीटे हासिल कर सरकार कांग्रेस ने ही बनाई लेकिन इन चुनावो में अलग हुआ धड़ा भी इंडियन नेशनल कांग्रेस (ओ )के नाम से चुनावो में उतरा और उसने 24. 34 % मत प्राप्त करते हुए 51 सीट हासिल की थी ,ये कांग्रेस के कमजोर होने की शुरुवात थी | इस दौरान देश को आपातकाल देखना पड़ा जिसके विरुद्ध जयप्रकाश नारायण ने आवाज बुलंद की और विपक्षी दलों को जनता पार्टी के बैनर तले संगठित किया ,परिणाम देश की जनता ने इंदिरा गांधी को नकार दिया ,यद्धपि दक्षिणी राज्यों से कांग्रेस को अच्छा समर्थन मिला लेकिन उत्तर भारत के लोगो की नाराजगी से कांग्रेस 189 सीट ही प्राप्त कर पायी और देश में पहली बार मोरारजी देसाई के नेतृत्व में गैर कांग्रेसी सरकार बनी | यद्यपि 1980 के आते आते जनता पार्टी का विभाजन इसके नेताओ के निजी स्वार्थो के चलते हो गया और जनता ने इन्हे नकार दिया तथा इन चुनावो में कांग्रेस 374 /542 सीटे प्राप्त कर सरकार बनाने में सफल रही ,लेकिन अब कांग्रेस को चुनौती देने के लिए देश में विपक्ष भी मौजूद था | इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद 1984 में पूरे देश का अपार समर्थन कांग्रेस को मिला और 404 /533 सीटों के साथ राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने | राजीव गाँधी के कार्यकाल के दौरान अयोध्या मामले पर कांग्रेस के स्टेण्ड को भाजपा ने लपक लिया और कांग्रेस की छवि हिन्दू विरोधी बनाते हुए कट्टरवादी हिन्दुओ तथा अपर कास्ट को अपने पक्ष में लाना शुरू कर दिया | इसका परिणाम 1989 में आया भी जब कांग्रेस ने करीब 9 प्रतिशत मत गंवाए और केवल 197 सीटे प्राप्त कर सकी ,इन चुनावो में भारतीय राजनीती में एक बड़ा परिवर्तन गठबंधन की राजनीती के रूप में सामने आया | वीपी सिंह (जनता दल ) ने क्षेत्रीय पार्टियों टीडीपी ,डीएमके ,और एजीपी से गठबंधन नेशनल फ्रंट बनाया और 17. 78 % मतों के साथ 143 सीटे हासिल की | कांग्रेस की हिन्दू विरोधी छवि बनाकर 1984 में महज 2 सीट प्राप्त करने वाली भाजपा इस चुनाव में 11. 36 % मत प्राप्त कर 83 सीट जीत पाने में सफल रही | भाजपा ने वीपीसिंह को बाहर से समर्थन दिया ,इसके साथ कम्युनिस्ट पार्टी का भी समर्थन मिलने से वीपी सिंह की सरकार बनी | लेकिन बिहार में लालकृष्ण आडवाणी के रथ को लालू प्रसाद यादव (जनता दल ) द्वारा रोककर उन्हें गिरफ्तार कर लिया जिसके बाद भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गयी | इसके बाद 1991 के चुनावो के दौरान राजीव गांधी की हत्या हुयी लेकिन कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला वो 244 सीट प्राप्त कर सकी ,इस समय 20. 04 % मत के साथ भाजपा के पास 120 सीट थी | लेफ्ट पार्टियों के समर्थन से पीवी नरसिम्हाराव ने अल्पमत की सरकार बनाई और उसे पांच साल चलाया भी | इसके बाद कांग्रेस का जनाधार लगातार घटा और वो 140 /1996 ,141/1998 ,114 /1999 ,145 -2004 और 206 /2009 में प्राप्त कर सकी दूसरी और भाजपा का जनाधार बढ़ता गया उसे 182 /1998 ,182 /1999 ,138 /2004 ,116 /2009 सीट्स मिली | तो वास्तव में तो भाजपा के उत्थान और कांग्रेस के पतन में 30 वर्षो का लम्बा समय लगा था | ऐसे में जब कांग्रेस 2014 के चुनावो में पहुंची तो उसके ऊपर हिन्दू विरोधी होने का टैग चस्पा था जिसे भाजपा ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान मजबूती से भुनाया ,अपर कास्ट कांग्रेस के साथ नहीं था और 1992 में बसपा और सपा के अस्तित्व में आने के बाद उसके दलित और मुस्लिम वोट बैंक में भी सेंधमारी शुरू हो चुकी थी | अब यदि कांग्रेस या देश इस चमत्कार की आशा करे कि जो कांग्रेस ने 30 वर्षो में खोया है उसे वो 5 वर्षो में हासिल कर लेगी और जो भाजपा ने 30 वर्षो में हासिल किया है वो इसे 5 वर्षो में गँवा देगी तो ऐसे चमत्कार केवल कहानियो में होते है वास्तविकता के धरातल पर नहीं |
तो क्या कांग्रेस का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा ?? कांग्रेस मुक्त भारत की बात केवल भाजपा कर सकती है लेकिन हकीकत में तो कांग्रेस सत्ता में रहे या न रहे जब तक भारत के जनमानस के मन में और विश्वपटल पर गांधी जीवित रहेंगे गांधी की विचारधारा वाली कांग्रेस समाप्त नहीं हो सकती | यहाँ गांधी की विचारधारा का जिक्र विशेष रूप से कर रहा हूँ ,ओर मेरे ये शब्द रिकार्ड करके रख ले कि जिस विचारधारा ने ब्रिटेन जैसी उस समय की महाशक्ति को झुकने पर मजबूर कर दिया था ,देश के राजनैतिक हालात कितने ही बदतर क्यों न हो जाए उन्हें रिप्लेस करने का काम यही विचारधारा करेगी अब ये अलग बात है कि इस विचारधारा को राहुल गांधी आगे बढ़ाएंगे या कोई और |राजनैतिक पराजय के बाद प्रत्येक राजनैतिक दल अपनी पराजय के कारणों का मंथन करता है जाहिर है कांग्रेस भी करेगी लेकिन क्या वो वास्तविक तथ्यों को महसूस कर पाएगी या मिशन विशेष पर काम कर रहे दलाल मिडिया के बनावटी विश्लेषणों में ही उलझ कर रह जायेगी | बेशक राहुल गांधी ये कहे कि ये विचारधारा की लड़ाई है लेकिन क्या वे उस अंतर को भी महसूस कर पाएंगे जो वर्तमान कांग्रेस में है | जरा सोचिये यदि इन परिस्थितियों में गांधी होते तो क्या ईवीएम को लेकर चुनाव आयोग या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते ,निश्चित रूप से नहीं बल्कि वे चुनावो का ही बहिष्कार करते ,इसे याद रखा जाना चाहिए कि 1919 में अंग्रेजो द्वारा जब डाइरची सिस्टम देश में लागू किया था जो केवल नाम की ही लोकतान्त्रिक स्वतंत्रता प्रदान करता था तो गाँधी ने चुनावो का बहिष्कार किया था और इसका व्यापक प्रभाव हुआ था | फिर 1939 को क्यों भूल जाते हो जब अंग्रेजो ने भारतीय हितो के विरुद्ध देश को द्वितीय विश्वयुद्ध की आग में धकेल दिया था कांग्रेस की सभी असेम्बली सरकारों और सेंट्रल कौंसिल के सभी सदस्यों ने इस्तीफे दे दिए थे ,तो यदि आपको लगता है कि लोकतंत्र खतरे में है तो क्यों नहीं अपनी सभी प्रांतीय सरकारों से इस्तीफे दिलवाकर ये सन्देश देते कि आपके लिए सत्ता नहीं लोकतंत्र अधिक महत्वपूर्ण है | क्या होगा दूसरी विचारधारा सत्ता पर काबिज हो जाएगी लेकिन आप ये तो प्रस्तुत कर पाएंगे ना कि आपके लिए वाकई लोकतंत्र अधिक महत्वपूर्ण है ,ऐसा ही उस समय भी हुआ था ना जब इस अवसर का फायदा कथित देशभक्तो ने सत्ता हासिल कर ली थी लेकिन इसके परिणाम से भी हम लोग अच्छी तरह वाकिफ है | मेरा ये मानना है कि कांग्रेस के पास अब खोने के लिए कुछ नहीं और ये समय उनके लिए गांधी को उसकी शक्तियों और नीतियों के साथ आत्मसात करने का है | गांधी की धुर विरोधी शक्तियां भी उसने सामने नतमस्तक होने को मजबूर है क्योंकि वो जानते है जिस दिन से वे गांधी को नकारना शुरू करेंगे उसी दिन से वे अपने पतन की राह पर अग्रसर होने लगेंगे क्योंकि गांधी केवल भारतीय जनमानस में ही व्याप्त नहीं है बल्कि वे सत्य और अहिंसा के एक ग्लोबल एम्बेसेडर है | ये सही है कि कांग्रेस की जो हिन्दू विरोधी छवि बना दी गयी उससे बहुसंख्यक मतदाता कांग्रेस से दूर हुआ लेकिन क्या इसके लिए दलाल मीडिया के कुचक्र में फंसकर राहुल गांधी को ये साबित करने की जरुरत थी कि वे कश्मीरी ब्राह्मण है आप हिन्दू है तो क्या इसके लिए आपको सॉफ्ट हिंदुत्व का सहारा लेने की जरुरत थी ,और आप भारतीय है क्या आप इसी को साबित करने की जद्दोजेहद में उलझे रहेंगे | गाँधी की कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष थी और यही स्वरूप इस देश का है इसलिए जरुरत इस बात की है कि आप अपने इसी स्टेण्ड पर कायम रहे | आपको कही भी कुछ भी साबित करने की जरुरत नहीं बल्कि जरुरत इस बात की है कि कांग्रेस तमाम दलाल मिडिया का बहिष्कार करे उनके किसी भी कार्यक्रम में शिरकत नहीं करे और न ही कोई प्रेस कांफ्रेंस करे | क्या कांग्रेस ने ये महसूस नहीं किया कि तमाम टीवी डिबेट्स या टीवी चेनलो द्वारा चोराहो पर आयोजित किये गए कार्यक्रमों में उन्ही के मुद्दे उन्ही के विरुद्ध इस्तेमाल किये गए तो फिर नुकसान करने वाले मीडिया से मोह कैसा | एक ही विचारधारा के लोगो को बिठाकर करने दीजिये न उन्हें डिबेट ताकि उन्हें भी अहसास हो कि टीआरपी कैसे बढ़ती है | जब आपको पता है कि संवैधानिक संस्थाए वो ही निर्णय लेंगी जिसके लिए उन्हें निर्देशित किया गया है तो आप क्यों उन संस्थाओ के पास जा रहे हो | लोकतंत्र में सबसे बड़ी ताकत है जनता की और मेरी राय में कांग्रेस को सीधे जनता के बीच जाना चाहिए दलाल मीडिया के माध्यम से नहीं | आपके पास अगले पांच साल है जिसमे आप चाहे तो गांधी को आत्मसात कर सकते है ,और सीधे जनता तक अपनी बात पहुंचा सकते है जिसके लिए आपको जरूरत होगी एक मजबूत संरचनात्कम ढाँचे की जो अभी कांग्रेस के दूर दूर तक नजर नहीं आता | और आखिर में एक बात फिरोज गांधी को कम से कम उस व्यक्तित्व के रूप में अवश्य याद कीजिये जिसने कांग्रेसी होते हुए भी उस समय कार्पोरेट्स द्वारा तत्कालीन नेताओ के सहयोग से किये जा रहे भ्रष्टाचार को उजागर किया था | भ्रष्टाचारी लोग कांग्रेस छोड़कर जाना चाहे तो उन्हें जाने दीजिये बल्कि कांग्रेस खुद ही उन्हें रवाना कर दे। और केवल इसलिए किसी व्यक्ति को कांग्रेस से मत जोड़िये कि वो किसी दूसरे राजनैतिक दल को छोड़कर आ रहा है बल्कि तब ही जोड़िये जब वो कांग्रेसी विचारधारा के अनुकूल हो | हो सकता है तात्कालिक परिणाम चिंताए बढ़ाने वाले हो लेकिन आने वाला समय कांग्रेस के जिस रूप को प्रदर्शित करेगा उसे नकारना जनता के लिए आसान नहीं होगा |
नोट - ये लेखक के अपने विचार है जरुरी नहीं कि आप इनसे सहमत हो ही ,लेकिन असहमति व्यक्त करने से पहले दूसरे के अभिव्यक्ति के अधिकार का सम्मान करे |
महेंद्र जैन
24 मई 2019
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