लोकसभा 2019 -पार्ट 1
लोकसभा 2019 -पार्ट 1
2019 का लोकसभा चुनाव भारतीय लोकतान्त्रिक इतिहास में एक ऐसे चुनाव के रूप में भी याद रखा जायेगा जिसमे तमाम राजनैतिक दलों ने अपने प्रचार के दौरान बेहद अमर्यादित और निम्न स्तर की भाषा का प्रयोग किया | सरकारे आएँगी और चली जाएंगी लेकिन यदि राजनीति में नैतिकता का पतन इसी तरह होता रहा तो क्या राजनैतिक शुचिता बची रह पाएगी इस पर नेताओ से अधिक इस देश के नागरिको को मनन करने की जरुरत है | चुनाव का विश्लेषण करने से पहले कुछ आंकड़ों पर नजर डाल लेते है क्योंकि हमारे विश्लेषण का आधार यही आंकड़े बनेंगे | वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावो में भाजपा का मत 25 % था जो 2014 में बढ़कर 39 % और 2019 में 44. 9 % हो गया | 2014 में एनडीए की कुल सीटों की संख्या 354 थी जिसमे 282 सीटे अकेले भाजपा के पास थी ,2019 में एनडीए की कुल सीटों की संख्या 353 है जिसमे भाजपा की भागीदारी 303 सीटों की है (जीती हुयी और प्रोजेक्टेड ) | इसके सामने 2009 में कांग्रेस का मत 37 % था जो 2014 में घटकर 24 % और 2019 में बढ़कर 27. 5 % हो गया | 2014 में यूपीए की कुल सीटे 66 थी जिनमे कांग्रेस की भागीदारी 44 सीटों की थी और 2019 में यूपीए की कुल सीटे 92 है जिनमे कांग्रेस की भागीदारी 52 सीटों की है | तीसरा घटक जो एनडीए या यूपीए का हिस्सा नहीं है उसका मत 2009 में 38 % ,2014 में 37 प्रतिशत और 2019 में 27. 5 % है | इस मोर्चे के पास 2014 में 107 सीटे थी जो 2019 में 97 रह जाने वाली है |
लोकसभा चुनावो के साथ ही कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हुए है जिनमे उड़ीसा में पिछली बार बीजेडी की सरकार थी जिसके पास 117 विधायक थे और इस बार भी 105 विधायकों के साथ उसी की सरकार बनने जा रही है | उड़ीसा विधानसभा में भाजपा ने अपने विधायकों की संख्या 10 से बढाकर 26 कर ली है जबकि कांग्रेस के विधायक 16 से घटकर 13 रह गए है | तेलंगाना में पिछली बार 62 विधायकों के साथ टीआरएस की सरकार थी और इस बार भी 88 विधायकों के साथ वही सरकार बनने जा रही है | यहाँ कांग्रेस के पास पहले 21 विधायक थे जो 19 रह गए है ,भाजपा का कोई विधायक यहाँ नहीं है | आंध्र में पहले 103 विधायकों के साथ टीडीपी की सरकार थी लेकिन इस बार उसे केवल 24 सीट मिली है जबकि पिछले चुनावो में 67 विधायक वाली वायएसआर कांग्रेस इस बार 151 विधायकों के साथ सरकार बनाने जा रही है | गत विधानसभा में भाजपा के चार विधायक थे जो इस बार नजर नहीं आएंगे | क्या कहते है ये आंकड़े चलिए ये देख लेते है , लोकसभा के साथ हुए विधानसभा के चुनावो ये स्पष्ट संकेत दिया है कि राज्यों के चुनावो में स्थानीय मुद्दे अधिक दखल देते है इसलिए इन्हे केंद्र से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए और शायद यही कारण है कि पूर्वोत्तर और दक्षिण के राज्यों में क्षेत्रीय दल ही लीड करते है ,हिंदी भाषी राज्यों में जहा भाजपा और कांग्रेस आमने सामने होते हुए गत चुनावो में इस की बानगी देखने की मिली थी इसलिए मेरी राय में ये बात औचित्यहीन है कि क्योंकि राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस लोकसभा चुनाव में कोई सीट नहीं जीत पायी इसलिए इन सरकारों को इस्तीफा दे देना चाहिए | दूसरी बात इन परिणामो को मोदी सुनामी जिसमे कांग्रेस समेत सभी दल ढह गए कहना भी अतिश्योक्तिपूर्ण कथन होगा | यद्यपि 2014 की तुलना में भाजपा न वोट शेयर 39 से बढ़कर 44. 9 प्रतिशत हुआ है लेकिन उसकी सीटों में केवल 21 सीटों की वृद्धि हुयी है और यदि पूरे एनडीए की बात करे तो ये आंकड़ा वही है जहाँ 2014 में था | क्या कांग्रेस ने सब कुछ इन चुनावो में गँवा दिया तो इसका जवाब भी स्पष्ट है ,कांग्रेस ने 2014 के 24 प्रतिशत के मुकाबले अपना वोट शेयर 27. 5 प्रतिशत किया है और 3. 5 प्रतिशत की वृद्धि के साथ अपनी सीटों की संख्या 44 से बढाकर 52 की है | भाजपा और कांग्रेस ने जो गेन किया है वो एक दूसरे से नहीं बल्कि उस तीसरे मोर्चे से किया है जिसने अपना वोट शेयर और सीटे दोनों गंवाई है जो इस बात की और हल्का ही सही लेकिन संकेत करता है कि केंद्र की राजनीति में मुख्य राष्ट्रीय दलों का ही नेतृत्व जनता चाहती है |
-- चुनावो का विस्तृत विश्लेषण पार्ट -2 में करते है |
महेंद्र जैन
24 मई 2019
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